सोमवार, 4 अप्रैल 2011

निराशा हाथ लगी ये कहना है कुछ कश्मीरी मुस्लिम का ........

खुले आसमान के नीचे भोजन की व्यवस्था 


अस्थायी ठिकाना 
कुछ महीने पहले कश्मीर से तक़रीबन हजार लोग कोलकाता आये .उन्होंने   शाल ,  शलवार सूट और कालीन बेचने का काम आरम्भ किया .किन्तु कोलकाता  में गर्मी अधिक होने के कारण उनका काम ठीक से चल नहीं सका .कोई ठोस व्यवस्था व् स्थायी रोजगार न होने की वजह से उन्हें खाने पीने की परेशानी  का सामना करना पड़ा .उनकी खस्ता हालत  देख कर अगल बगल में रहने वालो ने  उनकी मदद की और उन्हें सलाह दी की वे ऍन जिओ (गैर सरकारी संगठन ) के पास जाये और उनसे मदद मांगे .वे लोग कई एनजीओ के पास मदद के लिए गए  .उन्हें मदद भी मिली .प्रेस वालो ने भी उनकी बाते सुनी ,कुछ ने छापा भी .फिर पता चला की उनमे से काफी लोग कश्मीर वापस चले गए .जो बच गए है वे भी जा रहे है .हमने भी उनसे मुलाकात की .तो उनमे से कुछ लोगो ने बताया की वे बारामुला के रहने वाले है .उनको अपना देश इस लिए छोड़ना पड़ा क्योकि उन्हें वहा हुर्रियत कांफ्रेंस के लोग और पाकिस्तान से आने वाले militant  परेशान कर रहे थे उनको वहा जान का खतरा था इसलिए लगभग १०,००० लोग कश्मीर से निकल कर बड़े बड़े शहरो में बस गए ..जब उनसे पूछा की अब वे अगर वापस जायेंगे तो क्या उन्हें जान मॉल का खतरा नहीं होगा .इसपर उन्होंने जवाब दिया की कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने उनके रहने के लिए घरऔर काम की व्यवस्था की है .जहा वे लोग जाकर शांति से रहेंगे बात करते समय वे बार बार पूछ रहे थे की आप प्रेस से तो नहीं आप इसे कही छापेंगे तो नहीं क्योकि ये उन्हें परेशानी में डाल सकता है और हो सकता है की इससे उनकी जान पर भी बन आये .
उनके साथ हुयी मुलाकात ने कुछ सवाल खड़े कर दिए की क्या ये जो कह रहे है सही है , अगर ऐसा है तो कश्मीर में सुरक्षित कौन है .और अगर १०,००० लोग कश्मीर से निकले तो इसकी खबर मिडिया में क्यों नहीं आई .उन्ही सवालों के जवाब के लिए कश्मीर के बांदीपुरा जिले के विधायक  निजामुद्दीन बट  से बात की उनसे हुयी बात के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत है ......






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