रविवार, 15 मार्च 2020

निर्माता, निर्देशक, अभिनेता अर्जुन चक्रबर्ती


व्यहवहारिक, मिलनसार, विलक्षण  प्रतिभा के धनी
कलाकार अर्जुन चक्रबर्ती 
1986 में अंकुश जैसी फिल्म से  बॉलीवुड में  पैर  जमाने वाले, नाम कमाने वाले  फिल्म कलाकार अर्जुन चक्रबर्ती  ने हिंदी और बंगाली  फिल्मों में काम किया है, " माई  कर्मा " फिल्म ने उन्हें अंतराष्ट्रीय स्तर  पर ख्याति दिलवाई  वही उनके निर्देशन में बनी  फिल्म "  टॉली  लाइट " ने उन्हे सशक्त निर्देशक के रूप में स्थापित किया।  बहुचर्चित टीवी धारावाहिक "साहब बीबी और गुलाम"  में रवीना टंडन के साथ काम कर प्रशंसा बटोरी। अर्जुन चक्रबर्ती बहुत ही सहज, सरल, विनम्र और  व्यावहारिक है.  साक्षात्कार के  दौरान आपने बहुत सी बातों  (ऑन द  रिकार्ड ,ऑफ द  रिकॉर्ड ) पर खुल कर  चर्चा की. यहां प्रस्तुत है चर्चा के कुछ अंश.... 

१ प्रश्न, पिछले पांच पुश्त से आपके परिवार ने डाक्टर के पेशे को ही अपनाया आपने ये परंपरा कैसे तोड़ी ?
उत्तर,  बस टूट गयी .. .  मै  बी एस सी का छात्र था एक दिन अचानक दोस्तों के साथ एक फिल्म को लेकर झगड़ा हो गया बस उसी दिन मैंने निर्णय लिया कि मुझे बम्बई जाकर निर्देशक बनना  है.  और जब मै ट्रेन में सफर कर रहा था तभी मैंने माधुरी पत्रिका में एक इंटरव्यू पढ़ा और उसी समय ठान लिया कि  मुझे इसी शख्स के साथ काम करना है और वो शख्स है गुलजार साहब।

२ प्रश्न, गुलजार साहब से आपकी मुलाकात कैसे हुयी ?
उत्तर,  मुंबई पहुंचने के बाद मै उनसे मिलने उन के  ऑफिस  पंहुचा तो इत्तफाक से  वो मुझे लिफ्ट में ही मिल गए और उन्होंने दूसरे दिन मिलने का समय मात्र १० मिनट का दिया किन्तु जब दूसरे दिन मै उनसे मिला तो वो १० मिनट ढाई घंटे में बदल गए।  उन्होंने मुझसे बंगाल के बारे में पूछा , रवीन्द्रनाथ टैगोर , जैनेन्द्र  जैन, महादेवी वर्मा, कृष्ण चन्दर के बारे में बात की।  जब मै चलने लगा तो वे मुझसे बोले की अपनी तनखाह तो लेते जाओ ? मैंने आश्चर्य से पूछा तनखाह किस बात की?  तब उन्होंने   कहा की तीसरे सहायक की पोस्ट छह महीने से खाली है और आज से तुम मेरे सहायक हो। 

प्रश्न, गुलजार साहब के साथ आपने कितने वर्ष कार्य किया और उनकी कौन सी अच्छाइयों को आत्म सात किया और कौन सी बात पर आपको लगता की अगर ये कमी इनके व्यक्तित्व से निकाल दी जाये तो इनका कार्य और निखर जाये ?
उत्तर,  उनके साथ रहकर मैंने बहुत कुछ सीखा।  गुलजार जी हिंदी नहीं जानते वे या तो उर्दू जानते है या इंग्लिश।  उनके साथ रहकर मैंने उर्दू सीखी।  उन्होंने सिखाया कि  गीत सिचुएशन के हिसाब से लिखना होता है, मुझे लिखने को देते जब मै लिख कर दिखाता तो कहते कम से कम शब्दों का इस्तेमाल करो. मै गुलजार साहब के साथ साढ़े चार वर्ष था चूंकि निर्देशक बनने का कीड़ा शुरू से ही मेरे अंदर था तो मैंने गुलजार साहब के साथ निर्देशन की बारीकियां  सीखी। रही बात उनकी कमजोरी की तो  उनके अंदर सिर्फ एक ही कमी है की वे आर्ट फिल्म बनाते और एक्टर कमर्शियल लेते जिसका  परिणाम पिक्चर निर्धारित समय से ज्यादा समय ले लेती और  बजट अपेक्षा से ऊपर चला जाता।

४. प्रश्न, क्या आपने भी कवितायेँ लिखी है ?
उत्तर, बंगाली भाषा में लिखी कविताओं की एक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है, हिंदी कविताओं की पुस्तक पर काम चल रहा है तत्पश्चात अंग्रेजी में कवितायेँ प्रकाशित करवाने की सोचूंगा। 

५.  प्रश्न,  गुलजार जी ने आपको पहली बार काम किस पिक्चर में दिया तत्पश्चात आपको सफलता किन फिल्मों ने दिलाई?  
उत्तर, सबसे पहली पिक्चर अंगूर थी जिसमें मुझे संजीव कुमार के साथ एक छोटा सा रोल गुलजार साहब ने दिया । 1986 में अंकुश फिल्म में मैंने काम किया जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया। लेकिन मेरा रुझान बंगाली फिल्मों की तरफ ज्यादा था इस लिए मुंबई से कोलकाता आ गया यहां पिक्चरों और टीवी धारावाहिकों में काम किया। टीवी धारावाहिक में " साहब बीबी और गुलाम " काफी लोकप्रिय हुआ। बंगाली फिल्म "  मेरा  कर्म " को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली।

६, प्रश्न आपके द्वारा निर्देशित प्रथम फिल्म?
उत्तर, मेरे निर्देशन में पहली फिल्म टॉली लाईट थी, इसमें मेरे साथ सनी देवल एवम् मिथुन चक्रवर्ती थे।

७.  प्रश्न,  सनी देवल और मिथुन चक्रवर्ती दोनों ही बड़े कलाकार है इन लोगो ने आपसे पारिश्रमिक लिया था?
उत्तर, ये दोनों ही मेरे दोस्त है, पारिश्रमिक लेना तो दूर उल्टे मदद की थी जैसे कि इनके घर में, इनकी गाड़ी में शूटिंग करना। इन लोगो ने मेरी पूरी यूनिट को खाना भी खिलाया। बहुत ही अच्छे इंसान है।

८.  प्रश्न बॉलीवुड और टॉलीवुड में क्या अंतर है ?
उत्तर , सबसे बड़ा अंतर पैसे का है , दूसरा अंतर है नए विषय पर पिक्चर बनाना जैसे बधाई हो, अंधाधुन, आर्टिकल १५  आदि. इस मामले में   बंगाल थोड़ा पीछे है.  जिंदगी में  बहुत से इशू है जिन पर काम होना चाहिए सिर्फ नर और नारी का संपर्क ही सब कुछ नहीं है।  फैज अहमद फैज साहब की एक नज्म है, " और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा , राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।"   
  
९.प्रश्न,  अभी आप निर्देशक के रूप में किस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे है और ये  बंगाली में है या हिंदी में ?
ऊपर ,सुपर नेचुरल पावर के ऊपर अभी हमारी  काम करने की योजना है , एक और प्रोजेक्ट दिमाग में चल रहा है।  अब सवाल आपने पूछा है की बंगाली या हिंदी में तो हमारे प्रोड्यूसर साहब  बंगाली में बनाने की सलाह दे रहे है जबकि हम चाहते है कि वो हिंदी में बने। 

१०, प्रश्न , टॉलीवुड की कौनसी बात आपको सबसे ज्यादा प्रभावित करती है और बंगाल में  बंगाली  लोग अपने कल्चर के प्रति कितना समर्पित है उस पर आपकी क्या राय है  ?
उत्तर, यहां लोग मन से मिलते है, उनमे  आत्मीयता होती है वे आपके साथ आपकी जरुरत में भी खड़े रहते है। हिंदी फिल्मों में वो काम को ज्यादा तवज्जो देते है।   रही बात कल्चर की तो  बंगाली कही खोता जा रहा है, उसकी पहचान धूमिल हो ती जा रही है वो अब अपनी जड़ों से दूर जा रहे है जबकि महाराष्ट्रियन, गुजराती , दक्षिण भारतीय, पंजाबी  आज भी अपनी संस्कृति को संजो कर सहेज कर चल रहा है। 

११ , प्रश्न  आप युवाओं को क्या सन्देश देना चाहते है ?
उत्तर , धैर्य न खोये , जो भी काम करे मन से और ईमानदारी से करे , सफलता एक दिन में नहीं मिलती उसके लिए जल्दबाजी न दिखाए।  राजनीती से दूर रहे  और  राजनीतिज्ञों के हाथ की  कठपुतली  न बने। अपनी क्षमता पहचान कर आगे बढ़े. हिंसा का हिस्सा न बने।  

विभिन्न प्रकार के  फूलों  के  गमलों से सुसज्जित
अपने   फ्लैट की छत पर  एक्टर अर्जुन चक्रबर्ती 
 द  वेक पत्रिका की संपादिका शकुन त्रिवेदी के साथ 

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